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sarhul parab-festival of adivasi

      सरहुल   परब/ सरहुल  त्योहार.. !! "जय जोहार" !! "जय धरमे सबको" मुण्डा भाषा परिवार में बाहा/बा और दविड़ भाषा परिवार की कुड़ख/माल्तो में खद्दी का अर्थ फूल होता है और सभी फूलों के प्रतिनिधि के रूप में शाल का फूल। नागपुरी इत्यादि आर्य भाषाओं में प्रचलित सरहुल की व्युत्पत्ति सरई-हुल 'सरई' समूह ही है। अर्थ विस्तार में सरहुल शाल फूल के माध्यम से सारी प्रकृति के नवरूप का स्वागत ही है। शेष समग्र भारतीय परम्परा के साथ समयान्तर से यह ऋतु नये वर्ष के आगमन की भी सूचना है। यही कारण है कि किसी आदिवासी गाँव में पाहन/बैगा द्वारा विधिवत स्वागत पूजा के पहले कोई भी वन से फूल-पत्तियाँ नहीं लाता,ना ही खाता है। जब नये प्रकृति का स्वागत करना है तो आदमी अपनी अपनी समग्रता में नया होकर उसका स्वागत करता है। घर-द्वार की मरम्मत और लिपाई-पुताई करता है,नये कपड़ा खरीदता है और उस अवसर पर कुटुम्बों को बुलाकर पुराने संबंधों को नया करता है। पूरे झारखंड क्षेत्र में यह पर्व फागुन पूर्णिमा(होली पर्व) के दिन पूरब (बंगाल) में आरंभ होकर वैशाख पूर्णिमा तक पश्चिम (मध्य प...

Smita Kumari Oraon

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सिसई की आदिवासी बेटी ने मिस झारखंड एशिया इंटरनेशनल इंडिया का खिताब जीता           सिसई द्यसिसई प्रखंड के सिसई बस्ती की आदिवासी बेटी कुमारी स्मिता ने मिस झारखंड एशिया इंटरनेशनल इंडिया 2020 का खिताब जीता है। इसका आयोजन ग्लोबल इंडिया इंटर्नमेंट प्रोडक्शन की तरफ से दिल्ली में आयोजित किया गया था। इस दौरान कुमारी स्मिता ने कल 73 प्रतिभागियों को पीछे छोड़ते हुए सफलता प्राप्त की है। स्मिता वर्ष 2009 में सरस्वती विद्या मंदिर कुदरा सिसई में मैट्रिक प्रथम श्रेणी से पास करने के बाद मारवाड़ी कॉलेज रांची में बीबीए की पढ़ाई पूरी की। भवनेश्वर में मानव संसाधन विषय में एमबीए कर चुकी है। इसके पूर्व झारखंड में हुए ब्यूटी कॉन्टेस्ट मिस सुपर मॉडल में रनर अप भी रह चुकी है। अब मॉडलिंग में अपना भविष्य देख रही हैं। वह अपनी सफलता का श्रेय अपने दृढ़ निश्चय और अपनी मां वसुधा देवी और बड़े भाई शनिचरण उरांव उर्फ बंटी को देती हैं। उन्होंने बताया कि जीवन के हर फैसले में उसके परिजनों ने उसके प्रति विश्वास जताया है। उनकी मां ने कहा कि बच्चों को अपनी इच्छा अनुसार भविष्य बनाने...

How to relief from hinduism..

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      हिंदुत्ववाद से कैसे राहत मिलेगी...          सरना समाज झारखंडी आदिवासी के लोग हिंदू संस्कृति के गुलामी में जी रहे हैं शिव ,काली, मनसा, की पूजा सरना संस्कृति का हिस्सा बन चुकी है हिंदू संस्कृति का यही गुलामी के कारण सरना कोड लागू करना बहुत मुश्किल है। प्राचीन काल में ही ब्राह्मणों ने अपना संस्कृति को आदिवासी समाज में फैला दिया है ओझा प्रथा या जादू टोना प्रथा का गहरा असर पड़ रहा है क्योंकि यह शिव काली, मनसा, पर आधारित हिंदू संस्कृति है अभी भी 60% सरना वासी शिव, काली मनसा के कट्टर भक्त है सरना कोड लागू होने पर हिंदृ देवी देवताओं की पूजा को सरना संस्कृति से बाहर कर दिया जाएगा। । ऐसे में इन हिंदू देवी देवताओं के भक्तों का गुस्सा होना निश्चित है |    हमारे नेता लोग यह चीज अच्छी तरह से जानते हैं इसलिए सरना कोड लागू करना ही नहीं चाहेगा क्योंकि अधिकतर आदिवासी नेता के बेटा बेटी लोग दिकू से शादी किए हैं और हमारे आदिवासी समाज के अगुआ गन हिंदृ देवी देवताओं का दर्शन करते हैं जिस दिन हिंदू देवी देवताओं की पूजा अर्चना छोड़ द...

How to teach about humanity and our culture to our next generation...!

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हमारी अगली पीढ़ी को मानवता और हमारी संस्कृति के बारे में कैसे पढ़ाया जाए ...!      जय जोहार साथियों ! आपने इतना तो सुना ही होगा की लोगों को देख देख कर जल्दी सीखने की आदत होती है |आज समाज के सामने एक चुनौती हैं की कैसे हम आने वाली पीढ़ी को इस दुनिया के दिखावटी आदर्शवाद से दूर रख कर उन्हें वास्तविक इन्सानियत की परिभाषा सिखाये। हमें सीखना पड़ेगा की कैसे प्रकृति को बिना नुकसान पहुंचायें हम अपनी जरूरतें पूरी कर सके ताकि प्रकृति भी हमें अपनी गोद में सुकून से रहने दें पर ये सब किताबों की पढ़ाई से संभव नहीं होगा | हमे घरेलू स्तर पर भी अपने छोटे छोटे बच्चों को हमारी संस्कृति, बोली, भाषा से खुद रूबरू कराना पड़ेगा। खास कर st/sc/obc समुदाय को अपने बच्चो के दिमाग में हिन्दू मुस्लमान का कीड़ा तो घुसने ही नहीं देना है और बच्चो के दिमाग में बचपन से ही छोटा भीम कार्टून की कहानियों की जगह बाबा साहब की कहानियों को दिखाना शुरू करना पड़ेगा। इतना तो जरूर सीखाना ही पड़ेगा की बच्चा गांधी और गोडसे में से अच्छे बुरे की पहचान सके सके |और सबसे बड़ी बात की हम प्रकृति पूजक ...

हम आदिवासी क्यों हैं?

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हम आदिवासी क्यों हैं? आदिवासी और अनुसूचित जनजाति होना दो अलग- अलग बात हैं। 'आदिवासी' प्रकृति द्वारा सृजन किया गया एक स्थायी अवस्था है जबकि 'अनुसूचित जनजाति' शासनतंत्र के द्वारा बनाया गया एक अस्थायी अवस्था है। आदिवासी परिवार में जन्म लेने वाला व्यक्ति अपने मृत्यु तक आदिवासी ही रहेगा | लेकिन उसके अनुसूचित जनजाति बने रहना सरकार के द्वारा निर्धारित शर्तों पर निर्भर करता है। एक आदिवासी समुदाय एक राज्य में अनुसूचित जनजाति की सूची में है जबकि वही समुदाय दूसरे राज्य में उक्त सूचि से बाहर है। आदिवासी की अवस्था पूरे विश्व में एक ही रहता है। संविधान के अनुच्छेद 342 के द्वारा अनुसूचित जनजाति निर्धारित करने की व्यवस्था है। अनुच्छेद 3421 के तहत भारत के राष्ट्रपति राज्य के राज्यपाल से प्रमार्श लेकर किसी भी समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दे सकते हैं। इसके अलावा अनुच्छेद 3422 के तहत संसद कानून बनाकर किसी भी समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल या सूची से बाहर कर सकता है। अनुसूचित जनजाति की सूची राज्यवर अ...

आदीवासी लोग मंदिर/चर्च/आदि जगहों पर क्यों जाते हैं ?

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आदीवासी  लोग मंदिर/चर्च/आदि जगहों पर क्यों जाते हैं ?              जोहार  साथियों!! हमारे किसी facebook मित्र ने सभी आदिवासी साथियों से एक सवाल किया था कि "आखिर आदीवासी लोग मंदिर/चर्च/आदि जगहों पर क्यों जाते हैं " तो इस सवाल ने मुझे बहुत परेशान किया था और मैने पाया कि- और जो कुछ हमने पाया वो बातें आप सभी लोगों से साझा करने के दिल किया जो इस तरह से है!! प्रकृति से दूर हो कर किसी न किसी भी तरह से भोग वस्तों को कैस्नो प्राप्त कर ले !! ये सब कुछ एक आकर्षण है और एक झुठा अभिमान के सेवायें और कुछ भी नहीं !! जिस तरह से रात को जुगनुओं का झुण्ड ये समझ कर बहूत इत्रता(घमंड) दिखता है कि हम लोगों के कारण से ही जग(संसार) में रौशनी फैलती हैं !!      पर जब रात होने लगती हैं तो पुरे आकाश में सितारे टिमटिमने लगती हैं और फिर सितारे ये गलतफहमियां पाल लेते हैं कि पुरे विश्व में हमारे द्वारा ही रौशनी फैल रही है पर __ कुछ देर बाद ही सितारों का झुठा स्वाभिमान टूटता सा महसूस होता है जब पुर्ण चंद्रमा अपनी चंदनी की रौशनी चारों ओर ...

About Adivasi (Hindi)

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             आदिवासी       आदिवासी का शाब्दिक अर्थ है- आदिम बम की जातिया। यह भी प्रमाण-मिलता है कि औपनिवेशिक दुग के पूर्व आदिवासियों की अपनी स्वतंत्र मन्ना थी। जल, जंगल, जमीन और प्रकृति के संसाधनों पर उनका अधिकार था परन्तु जैसे- जैसे साम्राज्यवादी ताकतें बढ़ती गई, औपनिवेशिक सत्ताएं मजबूत होती गई. वैसे-वैसे आदिवासियों पर अत्याचार, शोषण बढ़ता गया। उनके संसाधनों पर जबरन कब्जा कर उन्हें अपनी जमीन से बेदखल किया जाने लगा। यह भी कि अपनी स्वायत्ता और अस्मिता के लिए जितना और जिस व्यापक पैमाने पर आदिवासियों ने पिडोह किया, उतना देश के किसी अन्य जवके ने नहीं किया। पूर्वोत्तर में सात राज्यों का गठन और कुछ ही यों पूर्व झारखण्ड, छत्तीसगढ़, उत्तराखण्ड (सभी आदिवासी बहुल) का गठन आदिवासी अस्मिता की लड़ाई का सबूत है। यह हकीकत है कि इस धरा का मूल निवासी तथाकथित सभ्य समाज की बर्बरता से जंगलों, कंदराओं की ओट में रहने के लिए विवश रहा। प्रकृति से साहचर्य स्थापित कर जल, जंगल और जमीन के किसी कोने में दुवाका या विकास और सुविधा-संसाधन स...