sarhul parab-festival of adivasi
सरहुल परब/ सरहुल त्योहार.. !! "जय जोहार" !! "जय धरमे सबको" मुण्डा भाषा परिवार में बाहा/बा और दविड़ भाषा परिवार की कुड़ख/माल्तो में खद्दी का अर्थ फूल होता है और सभी फूलों के प्रतिनिधि के रूप में शाल का फूल। नागपुरी इत्यादि आर्य भाषाओं में प्रचलित सरहुल की व्युत्पत्ति सरई-हुल 'सरई' समूह ही है। अर्थ विस्तार में सरहुल शाल फूल के माध्यम से सारी प्रकृति के नवरूप का स्वागत ही है। शेष समग्र भारतीय परम्परा के साथ समयान्तर से यह ऋतु नये वर्ष के आगमन की भी सूचना है। यही कारण है कि किसी आदिवासी गाँव में पाहन/बैगा द्वारा विधिवत स्वागत पूजा के पहले कोई भी वन से फूल-पत्तियाँ नहीं लाता,ना ही खाता है। जब नये प्रकृति का स्वागत करना है तो आदमी अपनी अपनी समग्रता में नया होकर उसका स्वागत करता है। घर-द्वार की मरम्मत और लिपाई-पुताई करता है,नये कपड़ा खरीदता है और उस अवसर पर कुटुम्बों को बुलाकर पुराने संबंधों को नया करता है। पूरे झारखंड क्षेत्र में यह पर्व फागुन पूर्णिमा(होली पर्व) के दिन पूरब (बंगाल) में आरंभ होकर वैशाख पूर्णिमा तक पश्चिम (मध्य प...